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Showing posts from July, 2017

खून

इन    खून  में    साने  हाथो    का    कपकपाना    सुन , एक  सकपकाए    दिल    ने    आवाज़    लगाई    फिर से , ‘ क्या    साँस    बाकी    है    अभी ? या    एहसास  हुआ    कोई    ग़लत  फिर    से ?’ आँखों    से  पानी    रिस्ता  देख  लगा , थोड़ी  जान  बाकी  अभी  थी    शायद  उसमे ; अपने    खूनी  की    तरफ  देख , हाथ  उठा  गुहार  लगाई  फिर  उसने | ना    थी  अब  कोई    भावना , ना    प्यार ,   ना  संतवाना ; फिर  भी    उसके    दर्द  से  कराने  आज़ाद , घोत  कर  गला    पड़ा    दबाना | स्थिर  हो    गये  उसके  फड़फदते  पैर , हाथ ,   और  शांत  हो  गयी  उसकी  चीख ; पर  इस  सन्नाटे  में  भी    सुनाई  दे  रही  थी , उसके  जीवन  जीने  की    रीत | हमेशा    खुशी  को    पाने  का    सोचती  थी , सपनो    में    रहती  खुश ; हर    सपना  उसका  था    अधूरा , फिर  भी    जीवन  जीती  थी    बिना  किसी  अंकुश | सीखने  को    बहुत  कुछ  था    उससे , कुछ    नही  तो  खुशी    का    राज़  ही  ब